लोकतंत्र
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जब वड्रा जी पर आंच आयी तो
प्रियंका जी घबराईं
दादी जी का नाम लेकर
रोनी सूरत ले आईं ||
मनमोहन जी को भी कंट्रोल किया
तब मम्मी से न कुछ बोला
लड्डू मिलते थे जब भैया
तब भेद कुछ न खोला ||
आज दिलातीं हैं वो हमको
आर टी आई का भरोसा
साठ साल से छीन के रखा
वो अब मजबूरी में छोड़ा ||
गरीबी का बना के मुरब्बा
हमको खूब चटाया
उसी गरीबी के नाम पर हमसे
कितना वोट पटाया ||
बिजली सड़क पानी को कैसा देखो टोटा
दे देती है इनकी सरकार कभी कभी एक लोटा
मोदी जी को देख इन्हें याद हमारी आई
जब वड्रा जी पर आंच आयी… तो प्रियंका जी घबराईं ||
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