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सूरज खींच लाते हैं चलो

लोकतंत्र
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TheSun













जिंदगी तूफानों में जब फँस ही गई

धूल आँखों में जब भर ही गई

तब ढलती सांझ से रुकने की मिन्नत क्या करें

अंधेरे को पी कर, सूरज खींच लाते हैं चलो ।

वक्त बुरा है हम जानते हैं

साथी कम हो चले हैं यह भी पहचानते हैं

हवाओं में सर्द खामोशी हो तो हो

बर्फ फिर भी  पिघलेगी, इतनी आग तो दिल में है अभी भी ।

सन्नाटे बढ़ते रहे हैं बरसों से

दरवाजे पर आहट होती कभी-कभी

क्या हुआ, जो कोई पूछता नहीं हाल दिल का

अकेले ही हँस लेने की हिम्मत बाकी है अभी भी।

तुम देखना एक दिन ऐसा भी आयेगा…

मिलने वाला हर चेहरा मुस्कुराएगा

ज़ोर लगा दिया है हमने इतना…

खरीद लेंगे हम, गम सारे जमाने के ।

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