लोकतंत्र
- 44 Posts
- 644 Comments
यह तुमने क्या कर डाला …?
विश्वास हमारा था तुम पर
पर तुमने चालें चल-चल कर
हमको ही छल डाला !
ओ शासक !
हमने तुमको मंदिर में बैठाया
माना फल दुआ का
लेकिन तुमने, सब निष्फल कर डाला !
अब देखो …
वे लिए मशालें आते हैं –
हुंकारों से, आकाश गुंजाते हैं
तुमने जनविद्रोह जगा डाला !
क्या कह कर तुम माफी मँगोगे
कितनों के आँसू पोंछोगे
तुमने तो मीठे तालाबों को
खारा-खारा कर डाला ।
यह चमन हमारा अपना था
उजड़ा-उजड़ा अब दिखता है
तुमने तो अपनी ही मिट्टी में
विष का बीज लगा डाला ।
Read Comments