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उठ जाओ तुम (महिला दिवस पर विशेष प्रस्तुति)

लोकतंत्र
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तुमको क्या डर है

तुम तो खींच दो बस

धागे बैठे-बैठे …

ज़िंदगी बदल देगी रास्ते – यही  सच है ।

 

तुम्हारी एक मुस्कान को

तरसते वो भी जो सरकार कहलाते

तुम जो उठ के चल दो

तो भूचाल हो जाए ।

 

यूँ ही सौंप रखी तुमने

जागीर अपनी

ये मर्द क्या चीज़ हैं

क्या है मजाल इनकी !

 

इस जहाँ में ऐसा क्या

जो लगे अच्छा तुम्हारे बिना…

उलट जाये ये सृष्टि

जो तुम्हारी भृकुटि हो जाये तिरछी !

 

नारी तुम हार गई  कई बार

लड़ाई इसलिए क्योंकि

तुम्हें खेलने का मज़ा चाहिए

नहीं तो जीत तुम्हारी कब की होती !

 

पर अब शायद इस खेल में

लगे सोचने कई अन्यथा

तुम थोड़ा पलट दो बाज़ी

व्यवस्था हस्तक्षेप चाहती है ।

 

रूप में बेटी के तुम ज़रा

दिखा दो कि सहारा तुम ही हो घर का,

खड़ी  हो जाओ संसार में अन्याय के विरुद्ध

दिखा दो रूप चंडिका !

 

उठ जाओ तुम

लड़ जाओ तुम …

परिवर्तन की इस बेला में

न कहे कोई कि तुम हारी !

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