लोकतंत्र
- 44 Posts
- 644 Comments
मृत्यु की अनजान गहराईयों में
खो जाते हैं सभी एक दिन ।
रह जाती हैं यादें – मुठ्ठी भर
और स्वप्नों की राख़ उड़ती फिरती है ।
आँसू बन कुछ हृदय पिघल जाते हैं
कुछ सिसकारियाँ चारों ओर फैल जाती हैं ।
हर ओर सजती हैं सहमी अर्थियाँ
फिर भी जीवन के पल लंबे लगते हैं !
न जाने कहाँ खो जाते हैं जाने वाले …
ये प्रश्न हमेशा अनुत्तरित ही रह जाते हैं !
इन गहरी निद्राओं के पार क्या है ?
पल भर सोच सब आगे बढ़ जाते हैं !
सब छायाएँ हैं – या कि सत्य कोई
अभी कल थे सभी, न आज कोई ।
जीवन रहस्यमय कुहासा तो मृत्यु अनजान अंधेरा
सब स्वयं ही इनमें गुम होते जाते हैं !
Read Comments