लोकतंत्र
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एक बार एक चिड़िया से
पूछा आकाश ने –
“क्या तुम खो गई हो ?
क्यों अपनों से दूर अकेली – चुपचाप उड़ती फिरती हो ?”
चिड़िया बोली –
“अरे आकाश !
वे सब जो अधिक सोचते हैं, स्वर्ग बनाने के स्वप्न देखते हैं …
उनकी यही नियति है ।”
यह सुन मर्माहत हो
एक बादल का टुकड़ा
नज़दीक आया
थोड़ा अपनापन दिखलाया ।
बादल बोला –
“चलो, मैं तुम्हारे संग चलूँगा,
जहाँ कहोगी,
मैं बरसूंगा ”
चिड़िया खेत-खेत
पानी ले पहुँची
फसलों को जीवन दे चहकी
खुश थी, वह मन की न्यारी … ।
फिर वह
धीरे से नीचे उतरी…
पर हाय, जाल बिछा था !
बादल भी बरसा ही था ।
गीले पंख
और भारी जाल – चिड़िया उड़ न सकी !
पर धरती चुप थी,
वह न बोली – तू क्यों अकेली ?
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