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क्या सार्थक है ?

लोकतंत्र
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क्या सार्थक है ?
सागर की मर्यादा
या नदी की आतुरता ?
काश कि मैं जान पाता !

 

तो मैं दे पाता उत्तर
उन आँखों को
जो स्वप्न संजोये
बैठी हैं सुबह से।

 

मैं जा पाता सामने
बिना डरे
और बंधा पाता ढांढ़स
किसी के विछोह पर ।

 

पर मैं भ्रमित हूँ
उजले दिन और
काली रात के मेल पर
साँझ भली या सुबह ?

 

क्या सार्थक है ?
शिखरों की ऊँचाई
या नींव की अंधेरों भरी गहराई ?
काश मैं जान पाता !

 

तो बता पाता निश्चित उत्तर
और रास्ते, इन नन्हे-नन्हे
उतावली आँखों वाले
प्रश्न पूछते बच्चों को।

 

पर मैं भ्रमित हूँ
उत्तुंग शिखरों के अकेलेपन
और नींव के पत्थरों पर
पड़ने वाले दबाव से !

 

क्या सार्थक है ?

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