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भूल या उपहार

लोकतंत्र
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खोल दिया क्यों ओ नन्हे बच्चे
तुमने मेरे पिंज़ड़े का द्वार ?

 

आज बड़ी ही है उलझन
ये भूल तुम्हारी या उपहार !

 

खुश हूँ सुन कर बात तुम्हारी …
कि उड़ जाऊं दूर क्षितिज के पार ।

 

सच बोलो…
सोच जरा फिर ।

 

फिर न होगा बंध किसी का
ये पिंजड़े का द्वार !

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