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आत्म स्वीकृति

लोकतंत्र
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अपने आप को पहचानने की दिशा में पहला कदम स्वयं को स्वीकार करना है । इस आत्म स्वीकृति के साथ एक अद्भुत प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है, मानों घटनाओं का एक क्रम जन्म लेता है जो कि फिर जीवन में पूर्ण परिवर्तन पर ही जा कर ही रुकता है । इस परिवर्तन की एक झलक इस छोटी सी कहानी के रूप में समझने की कोशिश करते हैं …

 

एक बहुत ही सुंदर और गुणी लड़की थी। उसका नाम था आशा। सबकी दुलारी, सबकी प्यारी। आशा आनंद नाम के नगर में माही नदी के किनारे रहती थी। आशा को बचपन में एक सन्यासी ने एक वरदान दिया था … कि आशा जो कुछ भी पूरी आस्था के साथ चाहेगी वह हो जाएगा। ऐसा शक्तिशाली वरदान फिर भी जिसके पूरा होने के लिए आशा ने कभी कोई इच्छा नहीं की …बस जीवन यूँ ही चलता रहा ।

 

आशा सोचती थी की वह पढ़ लिखकर जीवन में आगे बढ़ेगी। वह अपनी माँ का घर के काम काज में हाथ भी बँटाती थी । उसका स्वप्न था कि एक दिन वह अपने सपनों के राजकुमार से विवाह करेगी और फिर सदा सुखी रहेगी। बस यही थी उसकी अपने जीवन से आशा। एक दिन आसमान में अचानक घने काले बादल घिर आए। तेज़ हवाओं के साथ एक ज़ोर का तूफान आया । उसके बाद जम कर बारिश हुई। आशा घर के बाहर वाले बरामदे में बैठ मौसम के इस बदले रूप का आनंद ले रही थी। वह आसमान में दूर दूर तक दृष्टि दौड़ा कर देखती रही । कहीं बिजली की कौंध उठ रही थी तो कहीं बादलों के झुंड के झुंड दौड़े जा रहे थे। उसके अंदर से एक इच्छा जाग उठी… आशा सोचने लगी कि बादलों की तरह यूँ ही दूर दूर तक विचरना कितना अच्छा होगा, काश कि वह यूँ ही बादलों की तरह विचरती…! ऐसा सोचते सोचते वह सो गई ।

 

अगली सुबह वह अचानक चौंक कर उठ बैठी । पैर नीचे रखे तो पाया कि घर में पानी भरा था। कुछ बर्तन इधर उधर तैर रहे थे…घर के बाकी लोग अभी भी सो रहे थे….अचानक एक ज़ोर की आवाज़ आई और उसने अपने घर को ढहते हुए देखा और फिर वह बेहोश हो गई।

 

जब आशा की आँख दुबारा खुली तो उसने पाया कि वह अस्पताल में है। पास में ही एक  नर्स बैठी थी। उसे बॉटल भी चढ़ाई जा रही थी। वह आश्चर्य से भर उठी । यह सब क्या हो गया। उसने इधर उधर नजरें दौड़ाईं तो पाया कि उसके माता पिता पास की सीटों पर बैठे सो रहे थे… ।  आशा ने चैन की साँस ली। थोड़ी देर में उसके माता पिता भी उठ बैठे । सुबह हो रही थी। उसके माता पिता उसे उठा देख बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे बताया कि वह पिछले तीन दिनों से बेहोश थी। डॉ ने कहा था कि चिंता की बात नहीं है । उसके माता पिता ने बताया कि अगले ही दिन वे लोग उसे हवाई जहाज़ में लेकर दिल्ली जाने वाले  थे । वे उसके मामा के घर जा रहे थे। उसका घर तेज़ बारिश और तूफान में ढह गया था। उसे अब उसकी माँ के साथ दिल्ली में रहना था। उसके पिता आनंद वापस आकर घर दुबारा बनवाने वाले थे।

 

आशा सोचने लगी कि यह सब अचानक क्या हो गया… तभी उसे अपना बादल की तरह से विचरने वाला विचार याद आया और वह अंदर तक सिहर उठी…एक इच्छा का यह परिणाम…!

 

अब जरा अपने जीवन पर विचार करो …. कितनी सारी इच्छाएँ, कितनी सारी आशाएँ और फिर हमारी भाग दौड़। ध्यान से देखने पर पता चलेगा कि अपना संसार हम स्वयं ही रचते हैं। बस अन्तर इतना ही है कि यह सब कुछ बहुत ही धीमी गति से होता है…क्रमशः ! यह सब कुछ इतना शनैः शनैः होता है कि हमें पता ही नहीं चलता और हम सोचने लगते हैं कि यह सब हमारे ऊपर बाहर से थोपा गया है।

 

याद रखो कि यह हम ही हैं जो इस जीवन चक्र का भोग करना चाहते हैं लेकिन भूल जाते हैं कि यह चक्र हमारे द्वारा ही रचा गया है। एक बार अपने आप को स्वीकार करो – पूर्ण रूप से, जीवन की हर वस्तु को , हर आश-निराश को और तुम पाओगे कि यह सारा जगत एक विचार मात्र है और जब तुम इस विचार पर और दृढ़ता से केंद्रित होगे तब मानों एक धमाके के साथ पता लगेगा…. एक अनोखी घटना घटेगी … तुम देख सकोगे कि तुम स्वयं ही व्याप्त हो हर ओर…ऐसी है सत्ता आत्म स्वीकृति की !

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