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चलो आज देवों से पूछें …

लोकतंत्र
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चलो आज देवों से पूछें

वे क्यों कर मुस्काते हैं ?

पाषाणों में गढ़े हुए

वे क्या सुख पाते हैं ?

 

चन्दन  और पुष्पों से

मंदिर महकाये जाते हैं

प्रतिमाओं के आगे आ जन

नित नत मस्तक हो जाते हैं ।

तब क्या देख दीनता उनकी

देवगण हर्षित हो मुस्काते हैं !

 

प्रतिमाओं को गढ़ने वाले

जल से क्षुधा बुझाते हैं ।

पकवानों से पूजित हो

देव नमन को पाते हैं ।

 

लिए भाल पर श्रम के बिन्दु

वे कृषक खेत जोतने जाते हैं ।

वर्षा की बूँदों को ही पा

वे हर्षित हो गीत मधुर गाते हैं ।  

 

तेज़ धूप में फिर रक्तिम मुखमंडल ले

वे पूजा-गृह को आते हैं ।

दो पुष्प चढ़ा कृत कृत्य हुए

वे हर्षित हो आशा के संग घर जाते हैं ।

पर नहीं प्रश्न पूछने को

वे देवों को टेर लगाते हैं ।

 

ज्ञानीजन अपनी विद्या को

देवों की कृपा बताते हैं

पर विपदा के मारों को देव

कर्मों की राह दिखाते हैं ।

 

चलो आज देवों से पूछें

वे क्यों कर मुस्काते हैं ?

क्या रुदन और चीत्कारें सुन

नयन नीर न बरसाते हैं ?

 

पाषाणों में गढ़े देव

पाषाण-हृदय हो जाते हैं ।

इसीलिए  वे जगती के दुःख पर

चुपचाप खड़े मुस्काते हैं …!

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