- 44 Posts
- 644 Comments
चलो आज देवों से पूछें
वे क्यों कर मुस्काते हैं ?
पाषाणों में गढ़े हुए
वे क्या सुख पाते हैं ?
चन्दन और पुष्पों से
मंदिर महकाये जाते हैं
प्रतिमाओं के आगे आ जन
नित नत मस्तक हो जाते हैं ।
तब क्या देख दीनता उनकी
देवगण हर्षित हो मुस्काते हैं !
प्रतिमाओं को गढ़ने वाले
जल से क्षुधा बुझाते हैं ।
पकवानों से पूजित हो
देव नमन को पाते हैं ।
लिए भाल पर श्रम के बिन्दु
वे कृषक खेत जोतने जाते हैं ।
वर्षा की बूँदों को ही पा
वे हर्षित हो गीत मधुर गाते हैं ।
तेज़ धूप में फिर रक्तिम मुखमंडल ले
वे पूजा-गृह को आते हैं ।
दो पुष्प चढ़ा कृत कृत्य हुए
वे हर्षित हो आशा के संग घर जाते हैं ।
पर नहीं प्रश्न पूछने को
वे देवों को टेर लगाते हैं ।
ज्ञानीजन अपनी विद्या को
देवों की कृपा बताते हैं
पर विपदा के मारों को देव
कर्मों की राह दिखाते हैं ।
चलो आज देवों से पूछें
वे क्यों कर मुस्काते हैं ?
क्या रुदन और चीत्कारें सुन
नयन नीर न बरसाते हैं ?
पाषाणों में गढ़े देव
पाषाण-हृदय हो जाते हैं ।
इसीलिए वे जगती के दुःख पर
चुपचाप खड़े मुस्काते हैं …!
Read Comments