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काल गाथा

लोकतंत्र
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जरा ध्यान से देखो …
न जाने किन किन दिशाओं से,
आती हुई अनगिन जीवन धाराएँ ,
अद्भुत रूप लेती जा रही हैं |

 

वे तरंगित – करती अठखेलियाँ ,
गुजर रही हैं अजब मोड़ों से ,
करती उत्पन्न स्वरों की सरिता,
आरोपित हैं एक दूसरे पर |

 

अनजान आयामों से आते,
जीवन के प्रतीक प्रकाश-पुंज ,
मिल रहे हैं विभिन्न रूपों में,
और बन रहे हैं रंग नए|

 

फिर हो रहे हैं प्रवाह,
और नई-नई दिशाओं में,
फिर खोते जा रहे हैं सभी,
मिलने को शायद फिर कभी|

 

फिर बन रहे हैं वे देखो,
तारागण – नई आकाशगंगाएं ,
फिर हो रहे हैं श्रृष्टि के गान,
फिर मुखरित होते प्राण |

 

हर अवसान होता घटित है,
बन प्रतीक किसी उत्थान का,
बन जाते हैं बुझते दीप,
नई शिखाओं के उत्प्रेरक|

 

पवन का प्रचंड वेग कहीं,
सूर्य का कहीं उत्ताप,
सब काल के खण्डों में,
घटित होते प्रवेग |

 

उठाई जा रही हैं शपथें,
कहीं पतनोन्मुख कोई,
और अनंत काल के प्रवाह में
विलीन हो जायेंगे सभी |

 

फिर लिखी जा रही हैं
रची जाती कथाएं नई
फिर कहीं सुदूर उठती पुकारें
दिशाओं में खो रही आवाजें |

 

आंसुओं में भीगी आँखें वे देखो,
इन व्यथाओं को क्या कहो,
टूटे हुए मनों की पीड़ाएँ,
या पनप रहे राग नए !

 

खंडहरों के गूंजते हिस्से,
या चमकते शिखर नए,
सब कहते कथा एक ही,
गुजरते हुए पलों की गति…!

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