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दिल की बातें – कुछ यादें, कुछ आंसू ….

लोकतंत्र
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हमने तो सदाएं बहुत दी थीं
पर वे सब लौट आयीं
इस ठंड में ठिठुरती
शायद उनकी गली का हर दरवाज़ा बंद था…!
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इस जिन्दगी में हँसने के लम्हे
पहिले ही इतने कम हैं
और एक तुम हो कि बरस दर बरस
चुपचाप जिए जाते हो |
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उम्मीदों को इतना भी न बढ़ाओ
कि जिन्दगी एक मुसीबत बन जाये !
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हमने तो जिन्दगी में वो दिन भी देखे हैं
जब अपना ही साया साथ छोड़ जाता है
इसलिए ऐ दोस्त ! बेफिक्र रहना –
शिकायत भरी आवाजें इस ओर से न आयेंगी !
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अभी मत आवाज़ दो, सोने दो मुझे
जो जाग गया तो फिर याद आयेगी ….|
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दिल के अँधेरे इतने घने हो गए हैं
कि अब तेज़ धूप में भी छाँव की दरकार नहीं होती |
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खो दिए हैं हमने इस शहर में
खुशियों के अनमोल खजाने
अब वक्त माँगता है हिसाब
मैं क्या करूँ ?
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कोई छाँह नहीं, कोई सहारा नहीं
जिन्दगी इस शहर में कोई तुम्हारा नहीं |
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इन रास्तों पर मत आओ
यहाँ तो हम हैं
तेज हवाएं हैं
और दिल में एक घाव है |
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कहने को तो अब हम भी हँस लेते हैं महफ़िलों में
पर ऐ ज़माने जो घाव तूने दिए, हम भूले नहीं हैं !
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वो काफिले सजाते रहे
और हम करते रहे इंतजार
पर अफ़सोस – वक्त को न थी किसी की परवाह
वह तो दूरियां और बढ़ा गया |
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वक्त तू क्यों इतना विरोधी है –
करता है सांठ गाँठ हवा के हर झोंके से,
कि बन थपेड़ा वह मुझे चोट पहुंचाए,
जिन्दगी के हर मोड़ पर –
तू मुझे कठिन राहें दिखाए,
वक्त तू क्यों इतना विरोधी है !
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कुछ संग छोड़ गए
कुछ बने विरोधी
और कुछ बन अजनबी
चुप साध गए |
क्या जाने कैसी भूल हुई
कि हम सब कुछ ही हार गए !
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अकेले ही अकेले हम
न जाने कहाँ आ गए
हमने तो न तमन्ना की थी
यूं सूनी रातों को जीने की !
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अपने अपने दुःख
प्रतीक्षाओं के लम्बे अन्तराल
पतझड़ के मौसम
पत्ते धूल में लावारिस
तेज़ अंधड़
सूनी आँखें
कदाचित यह था अपर्याप्त –
तभी तो रे मन
तू भी टूट गया !
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पथराई आँखें शून्य तकतीं
मन में अबुझ प्यास
सूखे होंठ
ये तेज़ हवाएं
लड़खड़ाते कदम
अनजान राहें
अजनबी चेहरे
नियति ! मैंने ऐसा क्या बिगाड़ा था
जो इस मोड़ पर ले आयी !
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मत रो, रे मन, तू बात बात पर
हर बात यहाँ पर कडुवी है
चुपचाप चला चल तेज़ धूप में
हर छांह यहाँ पराई सी है |
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एक शाम और गुज़र रही है
तन्हा – तन्हा |
सौंप दिए हैं
उसने
सारे रंग
अपने
न जाने किसको ?
मेरे हिस्से में आयी है
फिर से
रात की कालिमा |
जीना है मुझे
एक बार और
सुबह का
करते हुए
इंतजार… |
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वक्त विरोधी है
पर नहीं दुश्मन
जल्दी ही बदलेंगे दिन |

मत तौलो मुझको
इन विपरीत दिनों में
पछताओगे |

जल्दी ही फिर उठ बैठूंगा
यह ठोकर क्या चीज़ है
मैं फिर जीतूंगा….!
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