लोकतंत्र
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कहो आज फिर वह संवाद
गूंजा था भारत में – सभ्यता का नाद |
इस हारे बेचारे जन-मन को
दो बता, अब आता फिर से सूर्योदय – बीत चली अब रात …|
ठहरा था जन टूटा था मन
स्वप्न हमारे चूर हुए हैं ।
पर हम भी भारत के जन हैं
नहीं अभी भी धूल हुए हैं ।
राम लड़े थे पैदल चल कर, जंगल-जंगल भटक-भटक कर
आता है हम को अब भी याद ।
देखो रात घनी ही होगी
मुश्किल देखो बड़ी ही होगी … ।
फिर भी रे जन लड़ना होगा
भारत के हित में चलना होगा ।
कहाँ हैं युवा, जोशीले अपने
कहाँ हैं लक्ष्मी बाई हमारी …?
आओ आगे, छोड़ो अब ये, जीवन-यापन के बहाने
देश माँगता, तुमसे जीवन, हाथ पसारे !
निकलो घर से, निकलो गाँवों से – शहरों से
आज फिर से आई पुकार… ।
ले हौसला बढ़ो आज फिर
राह देखता भारत का जन-मन
कहो आज फिर से वह संवाद
गूंजा था भारत में – सभ्यता का नाद |
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