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आह्वान

लोकतंत्र
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जनमत जनशक्ति साथ हो

राष्ट्रप्रेम की अनुभूति लिए तब

करते सेवा जन – जन  की

तुम आना रण विजय घोष को ।

 

 

रोको उन बेगानों को जो नहीं मानते…

करते स्वागत द्रोही जन  का वे 

और बेचते नित राष्ट्र हमारा

स्वार्थ लोलुप बन बाज़ारों में ।

 

 

जनमत जनशक्ति साथ हो

भर हुंकार उठा पतित को

समरस समाज की रचना कर

तुम आना रण विजय घोष को ।

 

 

कितना लहू  बहाया

कितना दुःख उठाया

उन देशभक्त दीवानों ने स्वातंत्र्य अग्नि में

निज को होम चढ़ाया ।

 

 

जनमत जनशक्ति साथ हो

उठा कदम निश्चय से भर

तुम निडर बढ़ जाना पथ पर

ओ भारत के रक्षक।

 

 

दहके थे वे शोला बन कर

उन पराधीन, काली रातों में

भेजे थे बच्चे माँओं ने

चढ़ने को भेंट, छुपा कर आँसू ।

 

 

 

जनमत जनशक्ति साथ हो

आगे बढ़ फिर थाम तिरंगा

तुम बनना ढाल जन-जन की

ओ नवयुग के सेनानी ।

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