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प्रश्नों के दायरे बढ़ रहे हैं,
और आवाजें फुसफुसाहटों से कोहराम में बदल रही हैं ।
‘कलावती’ का नाम लेकर संसद में तालियाँ तो बज़ गईं,
और ‘कलावती’ को कुछ रुपये भी मिल गये होंगे – सहायता के नाम पर ।
अब उसी ‘कलावती’ और उस जैसों के हजारों करोड़ लुट गए दिल्ली की निगरानी में – खेल खेल में,
और आप चुप हैं राहुल जी ।
इसे आपकी नियत का खोट कहें हम, या अयोग्यता का नाम दें,
पर हमें यह न कहिएगा कि यह केवल अफसरों की करामात थी, या कि आप अंजान हैं ।
दूरसंचार के घोटालों में भी,
हम बेचारे नागरिक देखते रहे दूर – दूर से …. ।
और लुटते रहे हमारे हक के पैसे आपकी सरकार के मंत्रियों की निगरानी में,
अब बैठ जाएगी कोई जाँच और हम करेंगे एक अंतहीन इंतजार ।
अब न कहिएगा हमसे कि,
यह तो मनमोहन जी जानें ।
सोनिया जी की कितनी ज्यादा चलती है,
यह हम सब – ‘कलावती’ और ‘नत्थू लाल’ – अच्छी तरह से पहचानें ।
प्रश्नों के दायरे बढ़ रहे हैं,
और आवाजें कोहराम से नारों में बदल रही हैं ।
कारगिल के नाम पर बनी इमारत की नींव के नीचे,
दफन कर दी आपकी सरकार ने सारी नैतिकता सरकार चलाने की, और आप चुप हैं !
महँगाई की मार झेल-झेल कर सुन्न पड़ गई जनता की जीभ,
और आप हैं, कि चले आते हैं तसला लेकर मिट्टी उठाने – बनाने को हमारा मजाक ।
अच्छा लगता हमें अगर सस्ती होती दाल,
और मिल जाता दो वक्त थोड़ा प्याज मेहनत का – अपना तसला तो हम खुद भी उठा लेते ।
प्रश्नों के दायरे बढ़ रहे हैं,
और आवाजें नारों से आंदोलनों में बदल रही हैं …।
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