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और आप चुप हैं राहुल जी…

लोकतंत्र
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Yuvaraj - Rahulप्रश्नों के दायरे बढ़ रहे हैं,

और आवाजें फुसफुसाहटों से कोहराम में बदल रही हैं ।

‘कलावती’ का नाम लेकर संसद में तालियाँ तो बज़ गईं,

और ‘कलावती’ को कुछ रुपये भी मिल गये होंगे – सहायता के नाम पर ।

 

अब उसी ‘कलावती’ और उस जैसों के हजारों करोड़ लुट गए दिल्ली की निगरानी में – खेल खेल में,  

और आप चुप हैं राहुल जी ।

इसे आपकी नियत का खोट कहें हम, या अयोग्यता का नाम दें,

पर हमें यह न कहिएगा कि यह केवल अफसरों की करामात थी, या कि आप अंजान हैं ।

 

दूरसंचार के घोटालों में भी,

हम बेचारे नागरिक देखते रहे दूर – दूर से ….  ।

और लुटते रहे हमारे हक के पैसे आपकी सरकार के मंत्रियों की निगरानी में,

अब बैठ जाएगी कोई जाँच और हम करेंगे एक अंतहीन  इंतजार ।

 

अब न कहिएगा हमसे कि,

यह तो मनमोहन जी जानें ।

सोनिया जी की कितनी ज्यादा चलती है,

यह हम सब – ‘कलावती’ और ‘नत्थू लाल’ – अच्छी तरह से पहचानें ।

 

प्रश्नों के दायरे बढ़ रहे हैं,

और आवाजें कोहराम से नारों में बदल रही हैं ।

कारगिल के नाम पर बनी इमारत की नींव के नीचे,

दफन कर दी आपकी सरकार ने सारी नैतिकता सरकार चलाने की, और आप चुप हैं !

 

महँगाई की मार झेल-झेल कर सुन्न पड़ गई जनता की जीभ,

और आप हैं, कि चले आते हैं तसला लेकर मिट्टी उठाने – बनाने को हमारा मजाक ।

अच्छा लगता हमें अगर सस्ती होती दाल,

और मिल जाता दो वक्त थोड़ा प्याज मेहनत का – अपना तसला तो हम खुद भी उठा लेते ।

 

प्रश्नों के दायरे बढ़ रहे हैं,

और आवाजें नारों से आंदोलनों में बदल रही हैं …।

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